कायस्थ ब्राह्मण
by Chitragupt Pariwar (Hum Kayasth) on Tuesday, October 26, 2010 at 12:36pm
कायस्थ, एक 'उच्च' श्रेणी की जाति है. वेदों और पुराणों के अनुसार इन्हे एक दोहरी जाति का दर्जा मिला है। यह मुख्य रूप से उत्तर भारत (आर्यवर्त क्षेत्र) भर में फैले हुए हैं और ऊपरी गंगा क्षेत्र में ब्राह्मण और बाकी में क्षत्रिय माने जाते हैं। [१]
'कायस्थ साधारण' तीन प्रकार के होते हैं:
कायस्थ ब्राह्मण
उपर्लिखित वर्गो में पहला वर्ग ही 'कायस्थ ब्राह्मण' कहलाता है. यही वह ऐतिहासिक वर्ग है जो श्रीचित्रगुप्तजी का वंशज है। इसी वर्ग कि चर्चा सबसे पुराने पुराण और वेद करते हैं। यह वर्ग १२ उप-वर्गो में विभजित किया गया है, यह १२ वर्ग श्रीचित्रगुप्तजी की पत्नियो देवी शोभावति और देवी नन्दिनी के १२ सुपुत्रो के वंश के आधार पर है। कायस्थो के इस वर्ग की उपस्थिती वर्ण व्यवस्था में उच्चतम है। प्रायः कायस्थ शब्द का प्रयोग अन्य कायस्थ वर्गों के लिये होने के कारण भ्रम की स्थिति हो जाती है, ऐसे समय इस बात का ज्ञान कर लेना चाहिये कि क्या बात "चित्रंशी या चित्रगुप्तवंशी कायस्थ" की हो रही है या अन्य किसी वर्ग की।
पौराणिक उत्पत्त्ति
कायस्थों का स्त्रोत भग्गवान श्री चित्रगुप्तजी महाराज को माना जाता है |कहा जाता है कि ब्रह्मा ने चार वर्ण बनाये ( ब्राह्मण , क्षत्रीय , वैश्य , शूद्र ) तब यमराज ने उनसे मानवों का विव्रण रखने मे सहायता मांगी। फिर ब्रह्मा ११००० वर्षों के लिये ध्यानसाधना मे लीन हो गये और जब उन्होने आँखे खोली तो एक पुरुष को अपने सामने स्याही-दवात तथा कमर मे तल्वार बाँधे पाया । तब ब्रह्मा जी ने कहा कि "हे पुरुष! क्योकि तुम मेरी काया से उत्पन्न हुए हो , इसलिये तुम्हारी संतानो को कायस्थ कहा जाएगा । और जैसा कि तुम मेरे चित्र(शरीर) मे गुप्त(विलीन) थे इसलिये तुम्हे चित्रगुप्त कहा जाएगा "
श्री चित्रगुप्त जी को महाशक्तिमान क्षत्रीय के नाम से सम्बोधित किया गया हैचित्र इद राजा राजका इदन्यके यके सरस्वतीमनु ।पर्जन्य इव ततनद धि वर्ष्ट्या सहस्रमयुता ददत ॥ ऋग्वेद ८/२१/१८
गरुण पुराण मे चित्रगुप्त को कहा गया हैः
"चित्रगुप्त नमस्तुभ्याम वेदाक्सरदत्रे"(चित्रगुप्त हैं पात्रों के दाता)
कायस्थ ब्राह्मण के १२ शाखाएं
अल्ल
ये बारह उप जातियां, अनेकों 'अल्ल' में विभाजित हैं . एकवंश सामान्यत: एकराजा, एक ऋषि या एक देवता से प्रारम्भ होता है। समय के साथ वह् कई शाखाओं में विभाजित हो जाता है। इस मूल वंश के वंशज अनेको नवीन स्थानों और परिस्थितियों से अवगत हो अपने उप-वंश का निर्माण कर लेते हैं। परन्तु उसी समय में वह अपने मूल वंश के अधीन स्वयं को स्वीकार करते हैं. येही उप-वंश, चित्रगुप्त वंश के मामले में 'अल्ल' कहलाता है। आज इन अल्लो कि संख्या हजारों से अधिक हो गयी है। इसलिये सभी को अपने नाम में अल्ल के साथ अपनी उप-जाति (१२ सुपुत्रो कि नाम पर) लगानी चाहिये। जैसे अमिताभ पांण़्डे श्रीवास्तव जहां पर 'पांण्डे'-अल्ल है और 'श्रीवास्तव'-उपजाति।
श्रीचित्रगुप्त जयंती
देखें चित्रगुप्त जयंती कायस्थ भाई दूज के दिन श्रीचित्रगुप्त जयंती मनाते हैं। इस दिन पर वे कलम-दवात पूजा(कलम, स्याही और तलवार पूजा) करते हैं, जिसमें पेन, कागज और पुस्तकों की पूजा होती है।यह वह दिन है जब भगवान श्रीचित्रगुप्त का उदभव ब्रह्माजी के द्वारा हुआ था और यमराज अपने कर्तव्यों से मुक्त हो, अपनी बहन देवी यमुना से मिलने गये, इसलिए इस दिन पूरी दुनिया भैयादूज मनाती है और कायस्थ, श्रीचित्रगुप्त जयंती का जश्न मनाते हैं।
'कायस्थ साधारण' तीन प्रकार के होते हैं:
- (1) चित्रगुप्त कायस्थ (चित्रंशी या ब्रह्म कायस्थ या कायस्थ ब्राह्मण),
- (2) चन्द्रसेनीय कायस्थ प्रभु (राजन्य क्षत्रिय कायस्थ) और
- (3) मिश्रित रक्त के कायस्थ। (वे क्षत्रिय हैं अदालत के अनुसार)
- इनके अतिरिक्त चतुर्थ प्रकार उन गणों का है जो रक्त से तो नहीं परन्तु नाम से या कार्य से कायस्थ कहलाते हैं ।
कायस्थ ब्राह्मण
उपर्लिखित वर्गो में पहला वर्ग ही 'कायस्थ ब्राह्मण' कहलाता है. यही वह ऐतिहासिक वर्ग है जो श्रीचित्रगुप्तजी का वंशज है। इसी वर्ग कि चर्चा सबसे पुराने पुराण और वेद करते हैं। यह वर्ग १२ उप-वर्गो में विभजित किया गया है, यह १२ वर्ग श्रीचित्रगुप्तजी की पत्नियो देवी शोभावति और देवी नन्दिनी के १२ सुपुत्रो के वंश के आधार पर है। कायस्थो के इस वर्ग की उपस्थिती वर्ण व्यवस्था में उच्चतम है। प्रायः कायस्थ शब्द का प्रयोग अन्य कायस्थ वर्गों के लिये होने के कारण भ्रम की स्थिति हो जाती है, ऐसे समय इस बात का ज्ञान कर लेना चाहिये कि क्या बात "चित्रंशी या चित्रगुप्तवंशी कायस्थ" की हो रही है या अन्य किसी वर्ग की।
- Vedah.net जो कि इन्टरनेट की सबसे उतकृष्ठ और विश्वसनीय वैदिक साइट है, पर ब्राह्मणों की विभिन्न प्रकार देखिये [२]
- Kamat.com जो ब्राह्मण समुदाय की एक व्यापक साइट है, पर ब्राह्मणों की विभिन्न प्रकार देखिये [३]
- Hindunet.org के संस्कृत शब्दकोश मेंकायस्थ'इस प्रकार परिभाषित है (कृपया ध्यान दें कि वैदिक संस्कृत में केवल कायस्थ शब्द मुख्यतः 'चित्रगुप्त कायस्थ' के लिये प्रयोग किया जाता है):
पौराणिक उत्पत्त्ति
कायस्थों का स्त्रोत भग्गवान श्री चित्रगुप्तजी महाराज को माना जाता है |कहा जाता है कि ब्रह्मा ने चार वर्ण बनाये ( ब्राह्मण , क्षत्रीय , वैश्य , शूद्र ) तब यमराज ने उनसे मानवों का विव्रण रखने मे सहायता मांगी। फिर ब्रह्मा ११००० वर्षों के लिये ध्यानसाधना मे लीन हो गये और जब उन्होने आँखे खोली तो एक पुरुष को अपने सामने स्याही-दवात तथा कमर मे तल्वार बाँधे पाया । तब ब्रह्मा जी ने कहा कि "हे पुरुष! क्योकि तुम मेरी काया से उत्पन्न हुए हो , इसलिये तुम्हारी संतानो को कायस्थ कहा जाएगा । और जैसा कि तुम मेरे चित्र(शरीर) मे गुप्त(विलीन) थे इसलिये तुम्हे चित्रगुप्त कहा जाएगा "
श्री चित्रगुप्त जी को महाशक्तिमान क्षत्रीय के नाम से सम्बोधित किया गया हैचित्र इद राजा राजका इदन्यके यके सरस्वतीमनु ।पर्जन्य इव ततनद धि वर्ष्ट्या सहस्रमयुता ददत ॥ ऋग्वेद ८/२१/१८
गरुण पुराण मे चित्रगुप्त को कहा गया हैः
"चित्रगुप्त नमस्तुभ्याम वेदाक्सरदत्रे"(चित्रगुप्त हैं पात्रों के दाता)
कायस्थ ब्राह्मण के १२ शाखाएं
- माथुर
- गौड़
- भटनागर
- सक्सेना
- अम्बष्ठ
- निगम
- कर्ण
- कुलश्रेष्ठ
- श्रीवास्तव
- सुरध्वजा
- वाल्मीक
- अस्थाना
अल्ल
ये बारह उप जातियां, अनेकों 'अल्ल' में विभाजित हैं . एकवंश सामान्यत: एकराजा, एक ऋषि या एक देवता से प्रारम्भ होता है। समय के साथ वह् कई शाखाओं में विभाजित हो जाता है। इस मूल वंश के वंशज अनेको नवीन स्थानों और परिस्थितियों से अवगत हो अपने उप-वंश का निर्माण कर लेते हैं। परन्तु उसी समय में वह अपने मूल वंश के अधीन स्वयं को स्वीकार करते हैं. येही उप-वंश, चित्रगुप्त वंश के मामले में 'अल्ल' कहलाता है। आज इन अल्लो कि संख्या हजारों से अधिक हो गयी है। इसलिये सभी को अपने नाम में अल्ल के साथ अपनी उप-जाति (१२ सुपुत्रो कि नाम पर) लगानी चाहिये। जैसे अमिताभ पांण़्डे श्रीवास्तव जहां पर 'पांण्डे'-अल्ल है और 'श्रीवास्तव'-उपजाति।
श्रीचित्रगुप्त जयंती
देखें चित्रगुप्त जयंती कायस्थ भाई दूज के दिन श्रीचित्रगुप्त जयंती मनाते हैं। इस दिन पर वे कलम-दवात पूजा(कलम, स्याही और तलवार पूजा) करते हैं, जिसमें पेन, कागज और पुस्तकों की पूजा होती है।यह वह दिन है जब भगवान श्रीचित्रगुप्त का उदभव ब्रह्माजी के द्वारा हुआ था और यमराज अपने कर्तव्यों से मुक्त हो, अपनी बहन देवी यमुना से मिलने गये, इसलिए इस दिन पूरी दुनिया भैयादूज मनाती है और कायस्थ, श्रीचित्रगुप्त जयंती का जश्न मनाते हैं।
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