क्या होती है त्रिकाल संध्या ?
सामान्य दृष्टि से सन्ध्या माने दो समयों का मिलन और तात्त्वि दृष्टि से सन्ध्या का अर्थ है जीवात्मा और परमात्मा का मिलन। ‘सन्ध्या’ जीव को स्मरण कराती है उस आनंदघन परमात्मा का, जिससे एकाकार होकर ही वह इस मायावी प्रपंच से छुटकारा पा सकता है।
सूर्योदय, दोपहर के 12 बजे एवं सूर्यास्त इन तीनों वेलाओं से पूर्व एवं पश्चात् 15-15 मिनट का समय सन्ध्या का मुख्य समय माना जाता है। इन समयों में सुषुम्ना नाड़ी का द्वार खुला रहता है, जो कि कुंडलिनी-जागरण तथा साधना में उन्नति हेतु बहुत ही महत्त्वपूर्ण है।
सन्ध्या के समय ध्यान, जप, प्राणायाम आदि करने से बहुत लाभ होते हैं|
जानिए क्या मिलता है त्रिकाल संध्या करने से ?
1. नित्य नियमपूर्वक सन्ध्या करने से चित्त की चंचलता समाप्त होती है। धीरे-धीरे एकाग्रता में वृध्दि होती है।
2. भगवान के प्रति आस्था, प्रेम, श्रध्दा, भक्ति और अपनापन उत्पन्न होता है ।
3. अंतर्प्रेरणा जाग्रत होती है, जो जीव को प्रति पल सत्य पथ पर चलने की प्रेरणा देती है।
4. अंतःकरण के जन्मों-जन्मों के कुसंस्कार जलने लगते हैं व समस्त विकार समाप्त होने लगते हैं।
5. मुख पर अनुपम तेज, आभा और गम्भीरता आ जाती है।
6. वाणी में माधुर्य, कोमलता और सत्यता का वास हो जाता है।
7. मन में पवित्र भावनाएँ, उच्च विचार एवं सबके प्रति सद्भाव आदि सात्त्वि गुणों की वृध्दि होती है।
8. संकल्प-शक्ति सुदृढ़ होकर मन की आंतरिक शक्ति बढ़ जाती है।
9. हृदय में शांति, संतोष, क्षमा, दया व प्रेम आदि सद्गुणों का उदय हो जाता हैऔर उनका विकास होने लगता है।
10. प्रायः मनुष्य या तो दीनता का शिकार हो जाता है या अभिमान का। ये दोनों ही आत्मोन्नति में बाधक हैं। सन्ध्या से प्राप्त आध्यात्मिक बल के कारण संसार के प्रति दीनता नहीं रहती और प्रभुकृपा से बल प्राप्त होने से उसका अभिमान भी नहीं होता।
11. प्रातःकालीन सन्ध्या से जाने-अनजाने में रात्रि में हुए पाप नष्ट हो जाते हैं। दोपहर की सन्ध्या से प्रातः से दोपहर तक के तथा सायंकालीन संध्या से दोपहर से शाम तक के पापों का नाश हो जाता है। इस प्रकार त्रिकाल सन्ध्या करनेवाला व्यक्ति निष्पाप हो जाता है।
12. सन्ध्या करते समय जो आनंद प्राप्त होता है, वह वर्णनातीत होता है। हृदय में जो रस की धारा प्रवाहित होती है, उसे हृदय तो पान करता ही है, प्रायः सभी इन्द्रियाँ तन्मय होकर शांति-लाभ भी प्राप्त करती हैं।
13. सन्ध्या से शारीरिक स्वास्थ्य में भी चार चाँद लग जाते हैं। सन्ध्या के समय किये गये प्राणायाम सर्वरोगनाशक महौषधि हैं।
14. त्रिकाल सन्ध्या करनेवाले को कभी रोजी-रोटी के लिए चिंता नहीं करनी पड़ती।
क्यों आवश्यक है संध्या उपासना ?
और्व मुनि राजा सगर से कहते हैं : ”हे राजन् ! बुध्दिमान पुरुष को चाहिए कि सायंकाल के समय सूर्य के रहते हुए और प्रातःकाल तारागण के चमकते हुए ही भलीप्रकार आचमनादि करके विधिपूर्वक संध्योपासना करे । सूतक (संतान के जन्म लेने पर होनेवाली अशुचिता), अशौच (मृत्यु से होनेवाली अशुचिता), उन्माद, रोग और भय आदि कोई बाधा न हो तो प्रतिदिन ही संध्योपासना करनी चाहिए । जो पुरुष रुग्णावस्था को छोड़कर और कभी सूर्योदय या सूर्यास्त के समय सोता है वह प्रायश्चित्त का भागी होता है । अतः हे महीपते ! गृहस्थ पुरुष सूर्योदय से पूर्व ही उठकर प्रातःकालीन संध्या करे और सायंकाल में भी तत्कालीन संध्या-वंदन करे, सोये नहीं ।”
(विष्णु पुराण, तृतीय अंश : 11.100-103)
इससे ओज, बल, आयु, आरोग्य, धन-धान्य आदि की वृध्दि होती है ।
*
प्रार्थना द्वारा बड़े विषम और असाध्य रोग के रोगी आश्चर्यजनक रीति से रोगमुक्त
प्रार्थना में अमोघ, अलौकिक शक्ति विद्यमान है । यदि कोई शुध्द हृदय से भगवान की प्रार्थना करता है तो उसको अवश्य ही सत्प्रेरणा, सहायता, मार्गदर्शन, शांति, शक्ति और सफलता मिलती है । इसके अनेकों उदाहरण हमारे सामने हैं । यदि हम ईश्वर की सच्चे दिल से, एकाग्र चित्त से, विनम्रभाव से प्रार्थना करने की आदत डालें तो थोड़े ही समय में हमको अपने जीवन में चमत्कारिक परिवर्तन दिखाई देने लगेंगे । आपको अपने प्रत्येक कार्य तथा व्यवहार में इसके प्रभाव की गहरी छाप पड़ी हुई जान पड़ेगी । हृदय की गहराई से, अनन्य प्रेम और श्रध्दापूर्वक की गयी प्रार्थना मनुष्य के तन, मन पर अद्भुत प्रभाव डालती है । प्रार्थना के द्वारा मनुष्य में जो बुध्दि की निर्मलता-सूक्ष्मता, नैतिक बल, आध्यात्मिक शक्ति, आत्मविकास तथा जीवन को उद्विग्न और संतप्त करनेवाले जटिल सांसारिक प्रश्नों को सुलझाने की उत्तम समझ विकसित होती है, वह विलक्षण है ।
ऐसी कोई समस्या नहीं जिसका समाधान ईश्वर की प्रार्थना से न हो सके । ऐसी कोई कठिनाई नहीं जिसका निवारण प्रार्थना न कर सके । ऐसा कोई कष्ट नहीं जो प्रार्थना से शांत न हो सके । ऐसी कोई बुराई नहीं जिसे प्रार्थना से हटाया न जा सके । सब प्रकार की दुष्कर परिस्थितियों में प्रार्थना एक रामबाण औषधि है ।
अच्छे-अच्छे वैद्यों और डॉक्टरों की सारी चिकित्सा व्यर्थ हो जाने के बाद, बिना किसी खास उपचार के केवल ईश्वर में निष्ठा रखकर प्रेमपूर्वक की गयी प्रार्थना द्वारा बड़े विषम और असाध्य रोग के रोगी आश्चर्यजनक रीति से रोगमुक्त होते देखे जाते हैं ।
कृत्रिम गर्भधारण-प्रक्रिया के दौरान प्रार्थनाओं के प्रभाव
अब तो प्रार्थना की शक्ति को वैज्ञानिकों ने अपने प्रयोगों द्वारा भी सिध्द किया है । पिछले वर्ष न्यूयार्क के कोलंबिया विश्वविद्यालय के डॉक्टरों ने डॉ. रोजेरियो एलोबो के नेतृत्व में दक्षिण कोरिया की राजधानी सियोल के एक अस्पताल में मानव-निषेचन (फर्टिलाइजेशन) पर एक प्रयोग किया । डॉक्टरों ने गोपनीय रूप से कुछ महिलाओं (जिनमें प्राकृतिक तरीके से गर्भधारण करने की क्षमता नहीं बची थी) पर उनकी कृत्रिम गर्भधारण-प्रक्रिया के दौरान प्रार्थनाओं के प्रभाव का अध्ययन किया ।
‘जर्नल ऑफ रिप्रोडक्टिव हेल्थ’ के अनुसार 200 बाँझ महिलाओं को कृत्रिम गर्भाधान के लिए चुना गया । इस समय उन सबकी प्रजनन-क्षमता एक समान थी । इनमें से 100 महिलाओं के लिए अमेरिका, न्यूजीलैंड, आस्ट्रेलिया, कनाडा, ब्रिटेन तथा अन्य देशों में प्रार्थना आयोजित की गयी । इन प्रार्थनाओं के बारे में न तो डॉक्टरों (जो इन महिलाओं को कृत्रिम तरीके से गर्भधारण कराने में मदद कर रहे थे) और न ही उन महिलाओं (जो कृत्रिम गर्भधारण के लिए डॉक्टरी सहायता ले रही थीं) को कोई जानकारी दी गयी । जिन महिलाओं के लिए प्रार्थनाएँ की गयीं, उनकी तस्वीरें प्रार्थना करनेवाले उन समूहों को दी गयीं, जो उनके लिए प्रार्थना कर रहे थे । हालाँकि ये समूह उन महिलाओं से परिचित नहीं थे, फिर भी इनकी दुआओं ने कमाल का असर किया ।
गर्भधारण करने की क्षमता में कमाल का अंतर
अध्ययन दल के डॉक्टरों ने पाया कि जिन महिलाओं के लिए प्रार्थनाएँ की गयीं, उनमें शारीरिक परिवर्तन बहुत जल्द देखने को मिले । कृत्रिम गर्भधारण का इलाज शुरू करने के कुछ दिनों बाद ही इन महिलाओं में प्रजनन के अनुकूल 10 प्रतिशत परिस्थितियाँ पायी गयीं । इसके विपरीत जिन महिलाओं के लिए प्रार्थनाएँ नहीं की गयी थीं, उनमें प्रजनन के अनुकूल परिस्थितियाँ 2 प्रतिशत से भी नीचे थीं । अध्ययन दल के अनुसार यह एक चमत्कारिक भिन्नता थी । प्रार्थनामिश्रित इलाज के पहले उन सभी महिलाओं की शारीरिक क्षमताएँ समान थीं, उनमें गर्भधारण की संभावनाएँ एक जैसी कम थीं परंतु प्रार्थनाओं के इस अतिरिक्त योगदान ने दोनों समूहों की गर्भधारण करने की क्षमता में कमाल का अंतर ला दिया ।
रोगियों पर प्रार्थनाओं के प्रभाव
इसी अध्ययन दल ने आस्ट्रेलिया के डरहम नगर में हृदय की गंभीर बीमारियों से जूझ रहे 150 रोगियों पर प्रार्थनाओं के प्रभाव का अध्ययन किया । अध्ययन दल ने जिन मरीजों को अपने शोध के लिए चुना था, उनमें सभीकी एंजियोप्लास्टी होनी थी । जिंदगी और मौत से जूझ रहे इन रोगियों के लिए भी प्रार्थना करनेवाले लोग इनसे अनभिज्ञ थे । वे न तो इन्हें जानते थे और न ही इनसे उनका कोई वास्ता था । प्रार्थना करनेवालों के पास इन रोगियों की तस्वीरें जरूर थीं और इन्हीं तस्वीरों को सामने रखकर प्रार्थना की जा रही थी । शोध दल ने पाया कि जिन मरीजों के लिए प्रार्थनाएँ की गयीं उनके उपचार में अलौकिक रूप से जटिलताएँ खत्म हो गयीं । इससे शोध दल ने यह निष्कर्ष निकाला कि प्रार्थना न केवल रोगियों में आत्मशक्ति बढ़ाती है बल्कि इसकी आध्यात्मिक ऊर्जा कई चमत्कारिक लाभ भी पहुँचाती है ।
मृतकों में भी जीवन का संचार
भगवान का नाम तथा भगवत्प्रार्थना वे अमृतधाराएँ हैं जो मृतकों में भी जीवन का संचार कर देती हैं । अंधे, बहरे, लँगड़े-लूले, बौने, अज्ञानी, नीच, क्षुद्र तथा अनाथ- सभी ईश्वर की प्रार्थना कर सकते हैं क्योंकि इसका सम्बन्ध हृदय व भावों से है, न कि शरीर से । प्रार्थना करने में बौध्दिक शक्ति की आवश्यकता नहीं है । एक अनपढ़ परंतु विनम्र व शुध्द हृदय से निकले अल्प शब्द एक पंडित, सुवक्ता या विद्वान के भाषण की अपेक्षा प्रभु को अपनी ओर अधिक आकर्षित करते हैं । एक बालक व्याकरण तथा शुध्द उच्चारण से अनभिज्ञ है परंतु उसके द्वारा उच्चारित मात्र ध्वनियों से ही माँ उसके हृदय की बात समझ लेती है । जब एक माँ नन्हे बालक के हृदय की भाषा समझ लेती है तो क्या वह अंतर्यामी परमात्मा हमारे हृदय की बात नहीं जानेंगे ? वे तो सब जानते हैं कि आप क्या कहना चाहते हैं । भले ही आपकी प्रार्थना में त्रुटियाँ हों अथवा आपका उच्चारण अशुध्द हो परंतु यदि आप निष्कपट होकर सच्चे हृदय से भगवान को प्रार्थना कर रहे हैं तो वे अवश्य सुनेंगे क्योंकि वे आपके हृदय की भाषा जानते हैं ।
सामान्य दृष्टि से सन्ध्या माने दो समयों का मिलन और तात्त्वि दृष्टि से सन्ध्या का अर्थ है जीवात्मा और परमात्मा का मिलन। ‘सन्ध्या’ जीव को स्मरण कराती है उस आनंदघन परमात्मा का, जिससे एकाकार होकर ही वह इस मायावी प्रपंच से छुटकारा पा सकता है।
सूर्योदय, दोपहर के 12 बजे एवं सूर्यास्त इन तीनों वेलाओं से पूर्व एवं पश्चात् 15-15 मिनट का समय सन्ध्या का मुख्य समय माना जाता है। इन समयों में सुषुम्ना नाड़ी का द्वार खुला रहता है, जो कि कुंडलिनी-जागरण तथा साधना में उन्नति हेतु बहुत ही महत्त्वपूर्ण है।
सन्ध्या के समय ध्यान, जप, प्राणायाम आदि करने से बहुत लाभ होते हैं|
जानिए क्या मिलता है त्रिकाल संध्या करने से ?
1. नित्य नियमपूर्वक सन्ध्या करने से चित्त की चंचलता समाप्त होती है। धीरे-धीरे एकाग्रता में वृध्दि होती है।
2. भगवान के प्रति आस्था, प्रेम, श्रध्दा, भक्ति और अपनापन उत्पन्न होता है ।
3. अंतर्प्रेरणा जाग्रत होती है, जो जीव को प्रति पल सत्य पथ पर चलने की प्रेरणा देती है।
4. अंतःकरण के जन्मों-जन्मों के कुसंस्कार जलने लगते हैं व समस्त विकार समाप्त होने लगते हैं।
5. मुख पर अनुपम तेज, आभा और गम्भीरता आ जाती है।
6. वाणी में माधुर्य, कोमलता और सत्यता का वास हो जाता है।
7. मन में पवित्र भावनाएँ, उच्च विचार एवं सबके प्रति सद्भाव आदि सात्त्वि गुणों की वृध्दि होती है।
8. संकल्प-शक्ति सुदृढ़ होकर मन की आंतरिक शक्ति बढ़ जाती है।
9. हृदय में शांति, संतोष, क्षमा, दया व प्रेम आदि सद्गुणों का उदय हो जाता हैऔर उनका विकास होने लगता है।
10. प्रायः मनुष्य या तो दीनता का शिकार हो जाता है या अभिमान का। ये दोनों ही आत्मोन्नति में बाधक हैं। सन्ध्या से प्राप्त आध्यात्मिक बल के कारण संसार के प्रति दीनता नहीं रहती और प्रभुकृपा से बल प्राप्त होने से उसका अभिमान भी नहीं होता।
11. प्रातःकालीन सन्ध्या से जाने-अनजाने में रात्रि में हुए पाप नष्ट हो जाते हैं। दोपहर की सन्ध्या से प्रातः से दोपहर तक के तथा सायंकालीन संध्या से दोपहर से शाम तक के पापों का नाश हो जाता है। इस प्रकार त्रिकाल सन्ध्या करनेवाला व्यक्ति निष्पाप हो जाता है।
12. सन्ध्या करते समय जो आनंद प्राप्त होता है, वह वर्णनातीत होता है। हृदय में जो रस की धारा प्रवाहित होती है, उसे हृदय तो पान करता ही है, प्रायः सभी इन्द्रियाँ तन्मय होकर शांति-लाभ भी प्राप्त करती हैं।
13. सन्ध्या से शारीरिक स्वास्थ्य में भी चार चाँद लग जाते हैं। सन्ध्या के समय किये गये प्राणायाम सर्वरोगनाशक महौषधि हैं।
14. त्रिकाल सन्ध्या करनेवाले को कभी रोजी-रोटी के लिए चिंता नहीं करनी पड़ती।
क्यों आवश्यक है संध्या उपासना ?
और्व मुनि राजा सगर से कहते हैं : ”हे राजन् ! बुध्दिमान पुरुष को चाहिए कि सायंकाल के समय सूर्य के रहते हुए और प्रातःकाल तारागण के चमकते हुए ही भलीप्रकार आचमनादि करके विधिपूर्वक संध्योपासना करे । सूतक (संतान के जन्म लेने पर होनेवाली अशुचिता), अशौच (मृत्यु से होनेवाली अशुचिता), उन्माद, रोग और भय आदि कोई बाधा न हो तो प्रतिदिन ही संध्योपासना करनी चाहिए । जो पुरुष रुग्णावस्था को छोड़कर और कभी सूर्योदय या सूर्यास्त के समय सोता है वह प्रायश्चित्त का भागी होता है । अतः हे महीपते ! गृहस्थ पुरुष सूर्योदय से पूर्व ही उठकर प्रातःकालीन संध्या करे और सायंकाल में भी तत्कालीन संध्या-वंदन करे, सोये नहीं ।”
(विष्णु पुराण, तृतीय अंश : 11.100-103)
इससे ओज, बल, आयु, आरोग्य, धन-धान्य आदि की वृध्दि होती है ।
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प्रार्थना द्वारा बड़े विषम और असाध्य रोग के रोगी आश्चर्यजनक रीति से रोगमुक्त
प्रार्थना में अमोघ, अलौकिक शक्ति विद्यमान है । यदि कोई शुध्द हृदय से भगवान की प्रार्थना करता है तो उसको अवश्य ही सत्प्रेरणा, सहायता, मार्गदर्शन, शांति, शक्ति और सफलता मिलती है । इसके अनेकों उदाहरण हमारे सामने हैं । यदि हम ईश्वर की सच्चे दिल से, एकाग्र चित्त से, विनम्रभाव से प्रार्थना करने की आदत डालें तो थोड़े ही समय में हमको अपने जीवन में चमत्कारिक परिवर्तन दिखाई देने लगेंगे । आपको अपने प्रत्येक कार्य तथा व्यवहार में इसके प्रभाव की गहरी छाप पड़ी हुई जान पड़ेगी । हृदय की गहराई से, अनन्य प्रेम और श्रध्दापूर्वक की गयी प्रार्थना मनुष्य के तन, मन पर अद्भुत प्रभाव डालती है । प्रार्थना के द्वारा मनुष्य में जो बुध्दि की निर्मलता-सूक्ष्मता, नैतिक बल, आध्यात्मिक शक्ति, आत्मविकास तथा जीवन को उद्विग्न और संतप्त करनेवाले जटिल सांसारिक प्रश्नों को सुलझाने की उत्तम समझ विकसित होती है, वह विलक्षण है ।
ऐसी कोई समस्या नहीं जिसका समाधान ईश्वर की प्रार्थना से न हो सके । ऐसी कोई कठिनाई नहीं जिसका निवारण प्रार्थना न कर सके । ऐसा कोई कष्ट नहीं जो प्रार्थना से शांत न हो सके । ऐसी कोई बुराई नहीं जिसे प्रार्थना से हटाया न जा सके । सब प्रकार की दुष्कर परिस्थितियों में प्रार्थना एक रामबाण औषधि है ।
अच्छे-अच्छे वैद्यों और डॉक्टरों की सारी चिकित्सा व्यर्थ हो जाने के बाद, बिना किसी खास उपचार के केवल ईश्वर में निष्ठा रखकर प्रेमपूर्वक की गयी प्रार्थना द्वारा बड़े विषम और असाध्य रोग के रोगी आश्चर्यजनक रीति से रोगमुक्त होते देखे जाते हैं ।
कृत्रिम गर्भधारण-प्रक्रिया के दौरान प्रार्थनाओं के प्रभाव
अब तो प्रार्थना की शक्ति को वैज्ञानिकों ने अपने प्रयोगों द्वारा भी सिध्द किया है । पिछले वर्ष न्यूयार्क के कोलंबिया विश्वविद्यालय के डॉक्टरों ने डॉ. रोजेरियो एलोबो के नेतृत्व में दक्षिण कोरिया की राजधानी सियोल के एक अस्पताल में मानव-निषेचन (फर्टिलाइजेशन) पर एक प्रयोग किया । डॉक्टरों ने गोपनीय रूप से कुछ महिलाओं (जिनमें प्राकृतिक तरीके से गर्भधारण करने की क्षमता नहीं बची थी) पर उनकी कृत्रिम गर्भधारण-प्रक्रिया के दौरान प्रार्थनाओं के प्रभाव का अध्ययन किया ।
‘जर्नल ऑफ रिप्रोडक्टिव हेल्थ’ के अनुसार 200 बाँझ महिलाओं को कृत्रिम गर्भाधान के लिए चुना गया । इस समय उन सबकी प्रजनन-क्षमता एक समान थी । इनमें से 100 महिलाओं के लिए अमेरिका, न्यूजीलैंड, आस्ट्रेलिया, कनाडा, ब्रिटेन तथा अन्य देशों में प्रार्थना आयोजित की गयी । इन प्रार्थनाओं के बारे में न तो डॉक्टरों (जो इन महिलाओं को कृत्रिम तरीके से गर्भधारण कराने में मदद कर रहे थे) और न ही उन महिलाओं (जो कृत्रिम गर्भधारण के लिए डॉक्टरी सहायता ले रही थीं) को कोई जानकारी दी गयी । जिन महिलाओं के लिए प्रार्थनाएँ की गयीं, उनकी तस्वीरें प्रार्थना करनेवाले उन समूहों को दी गयीं, जो उनके लिए प्रार्थना कर रहे थे । हालाँकि ये समूह उन महिलाओं से परिचित नहीं थे, फिर भी इनकी दुआओं ने कमाल का असर किया ।
गर्भधारण करने की क्षमता में कमाल का अंतर
अध्ययन दल के डॉक्टरों ने पाया कि जिन महिलाओं के लिए प्रार्थनाएँ की गयीं, उनमें शारीरिक परिवर्तन बहुत जल्द देखने को मिले । कृत्रिम गर्भधारण का इलाज शुरू करने के कुछ दिनों बाद ही इन महिलाओं में प्रजनन के अनुकूल 10 प्रतिशत परिस्थितियाँ पायी गयीं । इसके विपरीत जिन महिलाओं के लिए प्रार्थनाएँ नहीं की गयी थीं, उनमें प्रजनन के अनुकूल परिस्थितियाँ 2 प्रतिशत से भी नीचे थीं । अध्ययन दल के अनुसार यह एक चमत्कारिक भिन्नता थी । प्रार्थनामिश्रित इलाज के पहले उन सभी महिलाओं की शारीरिक क्षमताएँ समान थीं, उनमें गर्भधारण की संभावनाएँ एक जैसी कम थीं परंतु प्रार्थनाओं के इस अतिरिक्त योगदान ने दोनों समूहों की गर्भधारण करने की क्षमता में कमाल का अंतर ला दिया ।
रोगियों पर प्रार्थनाओं के प्रभाव
इसी अध्ययन दल ने आस्ट्रेलिया के डरहम नगर में हृदय की गंभीर बीमारियों से जूझ रहे 150 रोगियों पर प्रार्थनाओं के प्रभाव का अध्ययन किया । अध्ययन दल ने जिन मरीजों को अपने शोध के लिए चुना था, उनमें सभीकी एंजियोप्लास्टी होनी थी । जिंदगी और मौत से जूझ रहे इन रोगियों के लिए भी प्रार्थना करनेवाले लोग इनसे अनभिज्ञ थे । वे न तो इन्हें जानते थे और न ही इनसे उनका कोई वास्ता था । प्रार्थना करनेवालों के पास इन रोगियों की तस्वीरें जरूर थीं और इन्हीं तस्वीरों को सामने रखकर प्रार्थना की जा रही थी । शोध दल ने पाया कि जिन मरीजों के लिए प्रार्थनाएँ की गयीं उनके उपचार में अलौकिक रूप से जटिलताएँ खत्म हो गयीं । इससे शोध दल ने यह निष्कर्ष निकाला कि प्रार्थना न केवल रोगियों में आत्मशक्ति बढ़ाती है बल्कि इसकी आध्यात्मिक ऊर्जा कई चमत्कारिक लाभ भी पहुँचाती है ।
मृतकों में भी जीवन का संचार
भगवान का नाम तथा भगवत्प्रार्थना वे अमृतधाराएँ हैं जो मृतकों में भी जीवन का संचार कर देती हैं । अंधे, बहरे, लँगड़े-लूले, बौने, अज्ञानी, नीच, क्षुद्र तथा अनाथ- सभी ईश्वर की प्रार्थना कर सकते हैं क्योंकि इसका सम्बन्ध हृदय व भावों से है, न कि शरीर से । प्रार्थना करने में बौध्दिक शक्ति की आवश्यकता नहीं है । एक अनपढ़ परंतु विनम्र व शुध्द हृदय से निकले अल्प शब्द एक पंडित, सुवक्ता या विद्वान के भाषण की अपेक्षा प्रभु को अपनी ओर अधिक आकर्षित करते हैं । एक बालक व्याकरण तथा शुध्द उच्चारण से अनभिज्ञ है परंतु उसके द्वारा उच्चारित मात्र ध्वनियों से ही माँ उसके हृदय की बात समझ लेती है । जब एक माँ नन्हे बालक के हृदय की भाषा समझ लेती है तो क्या वह अंतर्यामी परमात्मा हमारे हृदय की बात नहीं जानेंगे ? वे तो सब जानते हैं कि आप क्या कहना चाहते हैं । भले ही आपकी प्रार्थना में त्रुटियाँ हों अथवा आपका उच्चारण अशुध्द हो परंतु यदि आप निष्कपट होकर सच्चे हृदय से भगवान को प्रार्थना कर रहे हैं तो वे अवश्य सुनेंगे क्योंकि वे आपके हृदय की भाषा जानते हैं ।
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